पित्तपापड़ा गेंहूं और चने के खेतों में अपने आप उगने वाला एक पौधा है. ग्रामीण इलाकों में पित्तपापड़ा को कई बीमारियों के घरेलू इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक-संहिता में भी पित्तपापड़ा के काढ़े और चूर्ण को बुखार की आयुर्वेदिक दवा के रूप में माना गया है. कई जगहों पर इस पौधे को पर्पट नाम से भी जाना जाता है. इस लेख में हम आपको पित्तपापड़ा के फायदे, औषधीय गुण और उपयोग के बारे में विस्तार से बता रहे हैं.
पित्तपापड़ा क्या है ? (What is Pittapapada?)
गेंहूं के खेतों में पाए जाने वाले इस छोटे से पौधे की लम्बाई 5-20 सेमी के बीच होती है. इसकी पत्तियों छोटे आकार की होती हैं और इसके फूलों का रंग लाल व नीला होता है. सर्दियों के मौसम में ये गेंहूं के खेतों में ज्यादा पाए जाते हैं. आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में पित्त या वात के प्रकोप से होने वाले बुखार से राहत दिलाने में इसका उपयोग किया जाता है. पर्पट के संदर्भ में कहा गया है कि – एक पर्पटक श्रेष्ठ पित्त ज्वर विनाशन, अर्थात पर्पट पित्तज्वर की श्रेष्ठ औषधि है।
अन्य भाषाओं में पित्तपापड़ा के नाम (Name of Pittapapada in Different Languages)
पित्तपापड़ा का वानस्पतिक नाम Fumaria indica (Haussk.) Pugsley (फ्यूमैरिया इंडिका)
Syn-Fumaria parviflora var.indica (Hausskn.) Parsa. यह Fumariaceae (फ्यूमैरिएसी) कुल का पौधा है. आइए जानते हैं अन्य भाषाओं में किन नामों से पुकारा जाता है.
Fumitory in :
- Hindi : पित्तपापड़ा, शाहतेर, दमनपापड़ा
- English : फ्यूमवर्ट (Fumewort)
- Sanskrit : पर्पट, वरतिक्त, रेणु , सूक्ष्मपत्र
- Urdu : शात्रा (Shadhtra)
- Kannad : पर्पटक (Parpatak)
- Gujrati : पित्तपापड़ा (Pittapapda), परपट (Parpat)
- Telugu : वेरिनेल्लावेमु (Verinellavemu), छत्रषी (Chatrashi)
- Tamil : तूसा (Tusa), थुरा (Thura)
- Bengali : बनसल्फा (Bansalpha), खेतपापड़ा (Khetpapda)
- Nepali : धुकुरे झार (Dhukure jhar), कोईरे कुरो (Kuire kuro)
- Punjabi : षाहत्रा (Shahtra)
- Marathi : पितपापरा (Pitpapra), परिपाठ (Paripath)
- Malyalam : पर्पटा (Parpata)
- Mijoram : पिड-पापरा (Pid-papara)
- Arabi : बुकस्लात्-उल-मलिक (Bukslat-ul-mulik), बगलातुल-मुल्क (Baglatul-mulk)
- Persian : शाहतरज (Shahtaraj)
पित्तपापड़ा के औषधीय गुण (Medicinal Properties of Pittapapada in Hindi)
- पर्पट कटु, तिक्त, शीत, लघु; कफपित्तशामक तथा वातकारक होता है।
- यह संग्राही, रुचिकारक, वर्ण्य, अग्निदीपक तथा तृष्णाशामक होता है।
- पर्पट रक्तपित्त, भम, तृष्णा, ज्वर, दाह, अरुचि, ग्लानि, मद, हृद्रोग, भम, अतिसार, कुष्ठ तथा कण्डूनाशक होता है।
- लाल पुष्प वाला पर्पट अतिसार तथा ज्वरशामक होता है।
- पर्पट का शाक संग्राही, तिक्त, कटु, शीत, वातकारक, शूल, ज्वर, तृष्णाशामक तथा कफपित्त शामक होता है।
- इसमें आक्षेपरोधी प्रभाव दृष्टिगत होता है।
पित्तपापड़ा के फायदे और उपयोग (Uses and Benefits of Pittapapada in Hindi)
आमतौर पर पित्तपापड़ा का सबसे ज्यादा उपयोग बुखार के इलाज में किया जाता है. लेकिन बुखार के अलावा भी यह कई रोगों जैसे कि सर्दी-जुकाम, आंखों के रोगों आदि में लाभदायक है. आइये जानते हैं कि पित्तपापड़ा के पौधे का उपयोग हम किन किन समस्याओं में कर सकते हैं.
बुखार से आराम दिलाता है पित्तपापड़ा (Pittapapada benefits for Fever in Hindi)
बुखार होना एक आम समस्या है. कई बार वात या पित्त दोष के असंतुलन से बुखार हो जाता है इन्हें आयुर्वेद में पित्तज्वर और वातज्वर का नाम दिया गया है. आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार पित्तपापड़ा में ऐसे औषधीय गुण होते हैं जो बुखार को जड़ से खत्म करने में मदद करते हैं. आइये जानते हैं कि बुखार से आराम पाने के लिए पित्तपापड़ा का उपयोग कैसे करें.
- पित्तपापड़ा के 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ चूर्ण मिलाकर पिएं. इसके अलावा पित्तपापड़ा और अगस्त के फूल के 10-20 मिली काढ़े में 500 मिग्रा सोंठ मिला कर सेवन करने से भी बुखार ठीक होता है।
- नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ चूर्ण को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें. 10-20 मिली की मात्रा में इस काढ़े का सेवन करें. यह बुखार में होने वाली जलन, अधिक प्यास और पसीना आदि समस्याओं को दूर करता है।
- बराबर मात्रा में गुडूची, आँवला और पित्तपापड़ा मिलाकर सेवन करने से या सिर्फ पित्तपापड़ा से बने काढ़े का 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से पित्तज्वर में आराम मिलता है।
- बराबर मात्रा में गुडूची, हरीतकी और पर्पट का काढ़ा बनाकर 20-30 मिली मात्रा में सेवन करने से पित्त से होने वाले बुखार में लाभ मिलता है।
- पित्तपापड़ा से बने काढ़े (10-20 मिली) या पित्तपापड़ा, लाल चंदन, सुंधबाला तथा सोंठ का क्वाथ (10-20 मिली) बनाकर पिएं. इसके अलावा चंदन, खस, सुंधबालायुक्त और पित्तपापड़ा से बने काढ़े का 10-20 मिली की मात्रा में सेवन करें. यह पित्त के बढ़ने से होने वाले बुखार में लाभदायक है.
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- अंगूर, पित्तपापड़ा, अमलतास, कुटकी, नागरमोथा और हरीतकी की बराबर मात्रा लेकर इसका काढ़ा बना लें. इस काढ़े का 10-30 मिली मात्रा में सेवन करें. इससे पेट साफ़ होता है और बुखार में होने वाले दर्द से आराम मिलता है.
- गुडूची, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, चिरायता और सोंठ की बराबर मात्रा लेकर इसका काढ़ा बनायें. इस काढ़े का 10-20 मिली मात्रा में सेवन करने से वात और पित्त के असंतुलन से होने वाले बुखार में आराम मिलता है.
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