द्राक्षापथ्ये समे कृत्वा तयोस्तुल्यां सितां क्षिपेत्।
संकुट्याक्षद्वयमितां तत्पिण्डीं कारयेद्भिषक्।।
तां खादेदम्लपित्तार्तो हृत्कण्ठदहनापहाम्।
तृण्मूर्च्छाभममन्दाग्निनाशिनीमामवातहाम्।। यो.र.57/33-34
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
- द्राक्षा (Vitis vinifera Linn.) शुष्क फल 1 भाग
- पथ्या (हरीतकी) (Terminalia chebula Retz.) फल मज्जा 1 भाग
- सिता (इक्षु) (Saccharum offici narum Linn.) 2 भाग
मात्रा– 6-12 ग्राम
गुण और उपयोग– यह वटी पित्त और वात को शान्त करती है। पित्त के कारण होने वाले रोग जैसे अम्लपित्त, गले और छाती में जलन, अधिक प्यास लगना, बेहोशी, चक्कर आना को ठीक करता है। यह आमवात रोग में फायदा करता है। कब्ज के रोगियों के लिए यह उत्तम औषधि है। रात में सोने से पहले चार गोली दूध के साथ सेवन करने से सुबह दस्त होकर कब्ज से राहत मिलती है।
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