त्रिपलं शृंगवेरस्य चतुर्थं मरिचस्य च।
पिप्पल्याः कुडवार्धञ्च चव्यञ्च पलमेव च।।
तालीशपत्रस्य पलं पलाद्ध्र्रं केशरस्य च।
द्वे पले पिप्पली मूलादर्द्ध कर्षञ्च पत्रकात्।।
सूक्ष्मैला कर्षमेकञ्च कर्षं त्वगमृणालयोः।
गुडात्पलानि त्रिंशच्च चूर्णमेकत्र कारयेत्।। भै.र., अर्शोरोगाधिकार
क्र.सं. घटक द्रव्य प्रयोज्यांग अनुपात
- श्रृङ्गवेर (शुण्ठ) (Zingiber officinale Rosc.) कन्द 144 ग्राम
- मरिच (Piper nigrum Linn.) फल 192 ग्राम
- पिप्पली (Piper longum Linn.) फल 96 ग्राम
- चव्य (Piper retrofractum Vahl.) Stem 48 ग्राम
- तालीशपत्र (तालीश) (Abies webbiana Lindle.) पत्र 48 ग्राम
- केसर (नागकेशर) (Mesua ferrea Linn.) Stem 24 ग्राम
- पिप्पलीमूल (पिप्पली) (Piper longum Linn.) मूल 96 ग्राम
- पत्र (तेजपत्र) (Cinnamomum tamala) पत्र 6 ग्राम
- सूक्ष्मैला (Elettaria cardamomum Maton.) बीज 12 ग्राम
- त्वक् (Cinnamomum zeylanicum Breyn.) त्वक् 12 ग्राम
- मृणाल (कमल) (Nelumbo nucifera Gaertn.) Stem/Root 12 ग्राम
- गुड़ (Jaggery) 1.440 किलो
मात्रा– 2-4 ग्राम
अनुपान– मधु, जल, मद्य, मांसरस, यूष।
गुण और उपयोग– यह गुटिका खूनी एवं बादी बवासीर की सर्वोत्तम दवा है। इसके नियमित सेवन से बवासीर में खून गिरना बंद हो जाता है तथा मस्से सूख जाते है। इसके साथ ही यह पाण्डु, कृमि, पेट दर्द, गुल्म, खाँसी, दमा, मूत्र संबंधित विकार, गलग्रह, विषमज्वर, भोजन न पचना, ह्य्दयरोग इन रोगों में भी लाभप्रद है।
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